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त्वं त्या चि॒दच्यु॒ताग्ने॑ प॒शुर्न यव॑से। धामा॑ ह॒ यत् ते॑ अजर॒ वना॑ वृ॒श्चन्ति॒ शिक्व॑सः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ tyā cid acyutāgne paśur na yavase | dhāmā ha yat te ajara vanā vṛścanti śikvasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। त्या। चि॒त्। अच्यु॑ता। अग्ने॑। प॒शुः। न। यव॑से। धाम॑। ह॒। यत्। ते॒। अ॒ज॒र॒। वना॑। वृ॒श्चन्ति॑। शिक्व॑सः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:2» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसा वर्त्ताव करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अजर) जरारूप रोग से रहित (अग्ने) विद्वन् ! (यत्) जिन (शिक्वसः) प्रकाशमान (ते) आपके गुण (वना) जङ्गलों को जैसे किरण, वैसे दोषों को (वृश्चन्ति) काटते हैं और (त्या, चित्) उन्हीं (अच्युता) नाश से रहित (धामा) स्थानों को (यवसे) भूसे आदि के लिये (पशुः) गौ आदि पशु (न) जैसे वैसे (त्वम्) आप (ह) निश्चय प्राप्त होते हो ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जिन अध्यापकों को गौओं को जैसे बछड़े प्राप्त होकर दुग्ध के सदृश विद्या को ग्रहण करते हैं और जो विद्वान् जन अग्नि के सदृश दोषों का नाश करते हैं, वे संसार के कल्याण करनेवाले होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अजराऽग्ने ! यद्यस्य शिक्वसस्ते गुणा वना किरणा इव दोषान् वृश्चन्ति त्या चिदच्युता धामा यवसे पशुर्न त्वं ह प्राप्नुहि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (त्या) तानि (चित्) अपि (अच्युता) नाशरहितानि (अग्ने) विद्वन् (पशुः) गवादिः (न) इव (यवसे) बुसाद्याय (धामा) धामानि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (ह) किल (यत्) यस्य (ते) तव (अजर) जरारोगरहित (वना) वनानि जङ्गलानि (वृश्चन्ति) छिन्दन्ति (शिक्वसः) प्रकाशमानस्य ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यानध्यापकान् गा वत्सा इव प्राप्य दुग्धमिव विद्यां गृह्णन्ति ये विद्वांसोऽग्निरिव दोषान् दहन्ति ते जगत्कल्याणकरा भवन्ति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. गाईचे वासरू जसे दूध पिते तसे जे अध्यापक विद्या ग्रहण करतात व जे विद्वान अग्नीप्रमाणे दोषांचा नाश करतात ते जगाचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ९ ॥